आप सभी को मेरा नमस्कार। मैं। प्रतिष्ठा गुप्ता? अपनी 1 कविता के साथ। जिसका शीर्षक मैंने दिया है जिंदगी? और समय। क्यूँ? ये जिंदगी खेलती है? रास्ता? दिखाकर? फिर? क्यूँ? ये अंधेरा कर? देती? है? 1? जिंदगी से लड़ते व्यक्ति ने पूछा? ऐ जिंदगी? मैंने? तेरा क्या? बिगाड़ा? यह? तू ने? मुझसे? किस बात का? बदला? निकाला?
Huma Ansari
@HumaAnsariwrite · 0:39
ह**ो प्रतिष्ठा जी बहुत ही सुंदर और प्रेरणा दायक कविता रही। आपकी। इससे मैं कुछ शब्द कहना चाहूंगी? जिंदगी देती है? सबक कदम कदम? पे? जिंदगी देती है? सबक कदम? कदम? पे हौसले रखने वाले ही पहुंचते मंजिल पे जान। लो। अहमियत वक्त की जान लो। अहमियत वक्त की। मत। बैठे? रहना भरोसे किस्मत के?
यूं ही इसे खराब करो। जो जिंदगी से चाहते हो उसे बोलते हो। वही है कि वक्त भी। अगर हम हर वक्त हर चीज को टालते रहते हैं? तो वो भी निकलता रहता है। इसके लिए। मैं कहना चाहूंगी कि अभी नहीं आज कर लेंगे? ऐसे ही कल पर टाल देंगे। वक्त निकलता है? कुछ इस तरह। हाथ से फिसलती हुई रे की तरह। चलो आज नहीं, अभी करते हैं। 1 कामयाब इंसान बनते हैं। चलो आज नहीं, अभी करते हैं?