1 हो तो दूसरा शान भविष्य निधि ने अपना धर्म निभाया ब्याज बढ़ता गया वक्त बे वक्त दुख टता गया, पर्वरिश पाकर संतान जब घर से दूर हुई दिल को दर्द और आँखों को नम कर गई उसकी देहरी पर दिया जलाने की खातिर माँ बाप ने जला दिया अपना ही जिया कभी पराई सी लगती है संतान साथ रह कर भी इस संग साथ रहने की तनहाई भी दस्ती है बहुत तल्खियां लहजे में वो चेहरे पर फंस रहा नागवारी का भाव, संग साथ रहने से तल्खियां लहजे में वो चेहरे पर पसरा नागवारी का भाव माँ बाप के दिल को दे जाता है बहुत भाव रिश्तों में अब वो पहले सी हरारत है नदारत रिश्तों में, अब वो पहली सी हरारत है नदारत कोई खरा खोटा नहीं होता, हालात के फेर में होते हैं सभी, यही है जिंदगी मजा इसी में है आज कभी हसाती तो कभी रुलाती है जिंदगी है दुआ मां बाप की सदाही, यही हर खुशी उनके बच्चों के तनमन पर सजे धन्यवाद।
Ranjana Kamo
@Gamechanger · 0:56
11 कर सब का कटते जाना, सबसे अलग होते जाना, एंड बहुत सी लॉस देखना। उम्र के बढ़ने के साथ ये सबसे मुश्किल समय रहता है जब आपके निजी संबंधी आपके, आसपास लोग कम होने लगते हैं। सब 11 कर कर आपको छोड़ते जाते हैं और आप अकेले पढ़ते जाते हैं। जीवन संध्या का ये समय सबसे मुश्किल होता है कि बहुत से लोग ऐसे हैं क्योंकि किसी को तो बाद में जाना है तो जो पहले चले गए वो आपके लिए बहुत दुख छोड़ जाते है। धन्यवाद। इस कविता के लिए थैंक यू।