नमस्कार दोस्तों दोस्तों मेरी आज की कहानी है पिंजरा रंग बिरंगी छोटी छोटी चिड़ियों का चाहे शोर कहें या कलरव लेकिन निरस्ता भरी हुई खामोशी को तोड़ने के लिए काफी और बहुत सुकून भरा भी था अपने छोटे से पिंजरों की तारों पर लटक कर और चोंच बाहर निकाल कर उन चिड़ियों की आपस में न जाने क्या बुझी सी बातें होती रहती थी पिंजरों में दाना पानी रखते और उनकी साफ़ सफाई करते हुए वह निर्जीव सी लड़की उनकी बातों को समझाने की भरसक कोशिश तो करती परन्तु बिना कुछ समझे बस उनकी खूबसूरती को निहारते हुए मुस्करा कर रह जाने के अलावा उसके पास कुछ नहीं था अकेलेपन उदासी और बेरंग सी उसकी जिंदगी की कुंठाएं शायद चिड़ियों के रंगीन पंखों को देख कर भी कुछ कम न होती और अदसुल्गी आग की राख के 1 ढेर में तब्दील होकर मन के भीतर ही रह जाया करती माँ की मृत्यु के बाद उसके घर में बीमार और वृद्ध पिता की कभी कभार उठती खराशों और सांस लेते समय गले की घरघराहट के अलावा यह चिडियों का शोर ही था जिसमें जिंदगी की कुछ झलक सी दिखाई देती थी अक्सर शाम के समय वह अपनी और चिड़ियों की आबो हवा बदलने के लिए घर की छत पर घूमते हुए कुछ देर इन पिंजरों को छत की मुंडेर पर रखती और इस दौरान आसपास के पेड़ों पर छत की मुंडेर पर और पिछली कितारों पर झूलती उन्मुक्त चिड़ियों को देख कर पिंजरों में बंद चिड़िया भी चहचहा आउट थी और उन सभी को फिर से 1 जुगलबंदी सी शुरू हो जाती थी कुछ देर बाद वो लड़की उसी उदासी भरे चेहरे और थके से हाव भावों के साथ पिंजरे लेकर दिन भर चमकते उजाले में भी फैली 1 अजीब सी उदासी के बाद रात के स्याह दियारे में कहीं गुम होने के लिए नीचे चली जाती उसे अपनी चिड़ियों से बेशुमार प्यार था और उनको कैद करने की वजह केवल प्यार भरा 1 अधिकार और अपने खाली जीवन में जिंदगी की स्वस्थ सांसें भरने वाले किसी जीव का साथ पाने की 1 दर्द भरी लालसा से ज्यादा कुछ न था जिंदगी की यही तो कठोरता है कि वह हमारे मन के हिसाब से नहीं चलती और खूबसूरती इसी में है कि हम उसके हिसाब से चुपचाप चलते रहे बहुत कम ही लोग होते हैं जिन्हें इसकी खूबसूरती दिखती है या फिर वह इसे संवारना जानते हैं चिडियों को शायद उसके प्यार की कोई समझ नहीं थी और उस लड़की के लिए उनका अबूझा चहचहाना भी किसी सन्नाटे जैसा ही था उनके रंगीन पंख भी जैसे बेनूर और धुंधले से ही थे उसे हर समय यही दुख रहता की घर के अंदर यह आपस में बातें करती है और छत पर बाहर की चिड़ियों से लेकिन मुझसे कभी नहीं बतियाती मेरी कैद में शायद उन्हें कोई दुख न हो लेकिन मुझे भी इनसे कोई सुख नहीं है अपने भीतर उठ रही अवसाद की चीखों से त्रस्त और लाचारी के चरम पर 1 दिन न जाने किस आवेश में उसने वो सारे पिजड़े खोल दिए पिजड़े की आदि कुछ चिड़िया तो अचानक मिली उस स्वतंत्रता को समझ ही न पाई और इधर उधर दीवारों में टकराने लगी कुछ 1 उड़ चली और 12 को कई दिन से घात लगाए बैठी बिल्ली ने अपना निवाला बना लिया पिजड़े खाली होकर यूं ही खोटी पर लटक रहे थे एकाएक खुलने और उड़ान की जद्दो जहद में उनमें रखा दाना पानी वहीं जमीन पर बिखर गया मन में बसे अवसाद से बने पिजड़े की सलाखें लोहे की सलाखों से कई गुना मजबूत घुटन भरी और हथियारी होती है जो चिड़िया हिम्मत करके उड़ गई वह तो मुफ्त हो गई लेकिन जिन्हें स्वतंत्र होने में भी परेशानी थी वह सभी बिल्ली के डर से वापस अपने पिंजरे की ओर ही आने लगी वह लड़की भी शायद स्वयं को अपने मन के उस पिंजरे से मुक्त नहीं कर पा रही थी उन चिड़ियों को वापस पिंजरे के अन्दर बंद कर उसने 1 बार फिर उनके और अपने पिंजरे के दरवाजे बंद कर दिए और वैसी ही सूनी आंखों से खुले आकाश में कहीं दूर उड़ चली अपनी चिड़ियों को देखती रह गई धन्यवाद