हेलो? एवरीवन। आज मैं स्वय में फिर अपनी 1 कविता के साथ लौटी हूँ। जिसका शीर्षक है कविता का सार। तुम देखता हूँ नूर उसका किताबों सी नजर आती है। दिल की 1। गहराई। जैसे कविता बन मन में उतर जाती हैं। मुख से। जो शब्द निकले नज्म, मैं लिख देता हूं। सामने। वो आती। जैसे जाड़ों में। धूप खिल जाती हैं। जब। जब दुखों के जाल में फंसता वो मुस्कराहट की चादर बिछा जाती है। संसार मेरा बन गई है। वो।