और पास पड़ोस के दोस्तों यारों के साथ। उतार ली जाती थी। दोस्तों उस वक्त। ऐसा तो नहीं होता था किसी के पास। पर फिर भी खुशियां बहुत थी। लोगों के पास। समय था। 1 दूसरे की बातें सुनने का। 1 दूसरे का दिल हल्का करने का। कभी कभी तो किसी छोटी सी बात पर बहस भी छिड़ जाती। और हल्ला शोर भी होने लगता। मोहल्ले की। औरतें आती अपने अपने पति को घर ले जाती। और थोड़ी ही देर में झगड़ा फिर से शांत हो जाता। कभी? चाचा जान? मुंह में? पान? चबाए?
Uchi. Uchita Galaiya
@Feather · 1:07
और बिल्कुल चाहे कितने भी कैफे खुल जाए पर चाय की टपरी तो चाय की टपरी ही रहेगी। और इसकी जगह कोई ले नहीं सकता। मुझे आपका से सुनकर काफी अच्छा लगा। आपका। बहुत बहुत धन्यवाद। और उम्मीद है। आपसे आगे भी मुलाकात होगी। धन्यवाद।
Pousali Das
@Pouz_Talk · 1:13
इसके लिए हमारे अंदर जो भी हो छोटा बड़ा बहुत डिजीज हो जाते हैं। मतलब बहुत मेंटल प्रेशर आ जाते हैं। हर 1 का यही प्रॉब्लम है। तो मुझे आपका यह स्केल बहुत अच्छी लगी। मैं थैंक यू? सो? मच फॉर? दिस? पोस्ट? थैंक यू?