@Anaatmaa · 3:20
सुख और दुःख की विडंबना
तो हमारे पिता की जो कला है, जो प्रज्ञा है, जो वित्वा है, जो जो विशेष गुण हैं, एकात्म की ओर ले जाने वाले, सोह की ओर ले जाने वाले। वे सभी। मुझे लगता है कि दुख में से होकर जाते हैं? सुख से? नहीं। तो दुख के क्षणों में हमें और ज्यादा सचेत होकर उसको लेकर 1 आदित्य का भाव होना चाहिए, रेसेप्टिविटी होनी चाहिए, वो रहेगी। तो। मुझे लगता है कि हम जरूरी जीवन में कुछ न कुछ बहुत मूल, भूत?